Dainik Bhaskar | देश की सबसे दानवीर महिला रोहिणी निलेकणी से खास बातचीत
बातचीत:प्रकृति के पास जाइए, फोन छोड़ परिवार संग खाना खाइए, बच्चे को पहला उपहार एक किताब दीजिए…
समाज, सरकार और बाजार… देश के इन तीन पहियों की मदद से ही राष्ट्र की प्रगति तय होती है। ऐसा मानना है भारत की सबसे दानवीर महिला रोहिणी निलेकणी का। एडलगिव हुरुन इंडिया 2022 के अनुसार 120 करोड़ रु. के दान के साथ 63 वर्षीय रोहिणी निलेकणी पिछले 3 साल से देश की सबसे बड़ी दानवीर महिला हैं। फिलैन्थ्रॉपिस्ट होने के साथ वे एक लेखक भी हैं। शिक्षा, पर्यावरण व लैंगिक समानता जैसे विषयों में रोहिणी काम कर चुकी हैं। फिलहाल रोहिणी निलेकणी फिलैन्थ्रॉपी फाउंडेशन की अध्यक्ष हैं। पढ़िए रोहिणी की दैनिक भास्कर के संचित श्रीवास्तव से खास बातचीत।
सामाजिक विषयों पर…
-सर्विस बिफोर सेल्फ… यह हमारे परिवार का मंत्र रहा है। मेरे दादाजी स्वतंत्रता सेनानी थे, चंपारन आंदोलन में उन्होंने गांधीजी के साथ काम किया था। मेरी फिलैन्थ्रॉपिक यात्रा की शुरुआत 1992 में हुई थी, जब मेरे एक दोस्त का सड़क दुर्घटना में निधन हो गया। उस हादसे ने मुझे झकझोर दिया था। उसके बाद ही हम कुछ दोस्तों ने मिलकर ‘नागरिक’ नाम से एक पहल शुरू की। यह सुरक्षित सड़कों के लिए एक सकारात्मक पहल थी। यहीं से मुझे प्रेरणा मिली। कुछ साल पहले मैं और मेरे पति (नंदन निलेकणी) ‘गिविंग प्लेज’ से जुड़ गए, जो बिल गेट्स, मेलिंदा गेट्स और वाॅरेन बुफे ने शुरू किया था। इसके तहत हमने अपनी लाइफटाइम में 50% वेल्थ डोनेट करने का फैसला लिया है।
मेंटल हेल्थ के विषय पर संवाद जरूरी…
-मेंटल हेल्थ का विषय काफी गंभीर है। हमारे देश में तकरीबन 20 करोड़ लाेगाें को मानसिक समस्या अनुभव होती हैं। इस समस्या से जूझने के लिए हमने इस साल दो संस्थान (निमहैंस और एनसीबीएस) के साथ मेंटल हेल्थ पर काम करना शुरू किया और 100 करोड़ रु. मेंटल हेल्थ के लिए डोनेट किए हैं।
निगेटिविटी से जीतने का फॉर्मूला…
-‘वॉक इन द वाइल्ड’ यह मेरा आइडिया है निगेटिविटी से जीतने का। जब मैं दुखी होती हूं, तो मैं तुरंत जंगल में चली जाती हूं। आप चाहें किसी भी शहर में रहें, जरूरी है प्रकृति के करीब रहना। जापान में निगेटिविटी से बचने की परम्परा है ‘शिनरिन योकू’…इसका मतलब कि जब आप प्रकृति के पास होते हैं तो आपकी पांचों इन्द्रियां प्रकृित से जुड़ जाती हैं व आपकाे तुरंत शांति मिलती है।
हर बच्चे के हाथ में एक किताब…
-हमने 2004 में प्रथम बुक्स नाम से एक एनजीओ शुरू किया था। उस समय हमने पाया कि बच्चे पढ़ रहे हैं लेकिन उनके पढ़ने के लिए पर्याप्त किताबें ही नहीं हैं। प्रथम बुक्स के स्टाेरीवीवर प्लेटफॉर्म के जरिए उन्हें किताबें पहुंचाई गई, अब तक यहां 10 करोड़ स्टाेरीज पढ़ी जा चुकी हैं। मैं तो हर पेरेंट को कहती हूं कि बच्चे को पहला गिफ्ट एक बुक ही दीजिए। मुझे याद है कि मेरा ग्रेंडसन जब 6 महीने का था तब उसे एक बुक पढ़ाई जा रही थी। जब उसकी मां उसके लिए किताब पढ़ती थी, तब किताब के आखिरी पन्ने तक आते-आते वो रोने लगता था कि उसे अब एक दूसरी किताब लाकर पढ़ाओ। यह ताकत होती है एक किताब की।
हेल्थ और जरूरी खानपान पर…
-आज के दौर में फैमिली डिनर जैसी परम्पराएं ही समाप्त हो रहीं हैं। हम सभी अपने स्मार्टफोन्स में बिजी होते जा रहे हैं। ऐसे में जरूरी है कि हम अपने स्मार्टफोन्स को किनारे रखकर परिवार के साथ फैमिली डिनर करना दोबारा शुरू करें। खानपान हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह समझना भी जरूरी है कि हमें फूड मिल कैसे रहा है। इसके पीछे कितना श्रम लगता है और हम फूड को किस तरह से कंज्यूम कर रहे हैं। एक दौर एेसा भी हुआ करता था जब हम दिन का पहला निवाला खाने से पहले प्रार्थना करते थे। यह दिखाता है कि हम खानपान को लेकर कितने जागरूक थे। हमें फूड को लेकर ग्रेटफुल होना चाहिए।
लैंगिक समानता के विषय पर…
-लैंगिक समानता की जब हम बात करते हैं, तो महिला सशक्तिकरण तो जरूरी है ही। लेकिन हमारी फिलैन्थ्रॉपी युवा लड़कों पर भी विशेष ध्यान देती है। क्योंकि युवा लड़कों की भी चुनौतियां होती हैं। उनके ऊपर भी समाजिक दबाव होता हे। युवा लड़कों के मानसिक दबाव अलग होते हैं। ऐसे में हमारा ध्यान यह है कि कैसे युवा लड़कों की मदद की जाए।
‘बचपन मनाओ और बच्चे बनो’…
-2014 में हमने ‘एकस्टेप फाउंडेशन’ की शुरुआत की थी। बच्चों को खेल-खेल में ही सीखने का मौका दीजिए। उनके साथ खुद भी बच्चे बन जाइए।
पर्यावरण चुनौतियों पर…
– रोज प्रकृति के लिए बस कोई एक प्रयास कीजिए। हमें पर्यावरण की चुनौतियां के बारे में मालूम है। लेकिन इसका पॉजिटिव पहलू यह है कि इतिहास में पहली बार 8 अरब लोग पर्यावरण के संरक्षक बन रहे हैं। हम सभी पर्यावरण चुनौतियों को लेकर अब जागरूक हो रहे हैं। सोचिए कि जब 8 अरब लोग मदर नेचर को बेहतर बनाने के बारे में सोचेंगे, तो पर्यावरण चुनौतियों पर हमें जीत कैसे नहीं मिलेगी?
चैरिटी और फिलैन्थ्रॉपी पर…
चैरिटी और फिलैन्थ्रॉपी में ज्यादा अंतर नहीं है। चैरिटी तब होती है, जब हम किसी समस्या का हल खोजने के लिए पैसे डोनेट करने का विचार बनाते हैं। चाहे वो किसी संस्थान के लिए डोनेशन हो, हॉस्पिटल को हो या फिर किसी घार्मिक संस्थान को ही क्यों न हो। पिछले 2-3 दशकों में फिलैन्थ्रॉपी शब्द काफी प्रचलित हुआ है। यह चैरिटी की तरह ही है, लेकिन यह ज्यादा स्ट्रेटजिक होता है। इसमें फिलैन्थ्रॉपिस्ट खुद ही अपनी संस्थान बनाते हैं और किसी जरूरी मकसद के लिए स्ट्रेटजी बनाकर काम करते हैं।
महामारी के दौरान आम भारतीयों ने सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च किये। तो, ऐसी समझ है कि दान केवल मानव जाति के प्यार से आता है, जिसकी ज़रूरत हम सभी को है – दूसरे लोगों की पीड़ा को दूर करने के लिए। लेकिन आजकल परोपकार, कम से कम, अधिक रणनीतिक होने और असमानता के मूल कारणों को संबोधित करने की आकांक्षा रखता है। अच्छे परोपकार को यही करना चाहिए।
Keywords
You may also want to read
Giving Pledge Signers On Why The 15-Year-Old Group Still Matters
Rohini and Nandan Nilekani Citizenship: India Net worth: $3 billion Year they joined the pledge: 2017 Areas of giving: Education, climate & environment, gender, mental health Nandan Nilekani is cofounder[...]
Funding Hope and Wellbeing | Rohini Nilekani & Melinda French Gates
In this insightful conversation, Rohini Nilekani, Chairperson of Rohini Nilekani Philanthropies, engages in a heartfelt conversation with Melinda French Gates, Founder of Pivotal Ventures, about the power of wellbeing to inspire welldoing. As[...]
IDR | Do finance and compliance in the social sector need a makeover?
Complex and changing financial rules often make it difficult for nonprofits to sustain their work. To turn finance into a strength rather than a burden, organisations need better training, peer[...]