कबीनी का काला पैंथर

Mar 31, 2021
Article

SHARE

यह तो होना ही था। जब दिल प्रफुल्लित होकर भर आता है, तो आंखे छलक ही जाती है। अंततः जब मैंने उस जीव को देखा, जिसका पीछा मैं पांच वर्षों से कर रही थी तो आंसू बिन बुलाये मेहमान की तरह चले आये। आख़िरकार, वह ब्लैकी या जैसा कि स्थानीय लोग उसे कहते हैं, करिया – कर्नाटक के कबीनी वन का विश्वप्रसिद्ध काला पैंथर है। वह हमारी जीप से करीब 15 मीटर दूर, एक पेड़ पर बेपरवाह, सुस्ता रहा था। बेंगलुरू लिटरेचर फेस्टिवल (बीएलएफ) में, ‘रोमांसिंग द ब्लैक पैंथर’ (bit.ly/karia) नामक एक व्याख्यान के साथ सार्वजनिक रूप से बयान देने के ठीक पांच दिन बाद, ब्लैकी ने अपनी उपस्थिति से मुझे अनुग्रहित किया।

क्या पल था वह! भगवान को धन्यवाद करते हुए, मैं स्तंभित होकर उसके चमकीले शरीर और लंबी पूँछ को टकटकी लगाए देखती रही। जब उसने हमारी ओर देखने के लिए अपना सिर घुमाया, तो उसकी पीली आँखें चमक उठीं; यही वह क्षण था जिसकी मुझे प्रतीक्षा थी। मेरा लक्ष्य हासिल हो चुका था। अंततः, इतने निष्फल प्रयासों के बाद, विशेषकर महामारी के वर्ष में, ब्लैकी मेरे सामने था।

यह इंतज़ार व्यर्थ नहीं था। न केवल इसलिए कि ब्लैकी बिलकुल वैसा था जैसी मुझे उम्मीद थी, बल्कि इसलिए भी, क्योंकि इस एक काली बिल्ली की तलाश के दौरान, मैंने बहुत कुछ पाया है।

अब तक की गयी अनगिनत सफारियों में, ब्लैकी अदृश्य, पर सदैव उपस्थित गुरु रहा है।

मैंने उससे कई सबक सीखे हैं। इस बिल्ली की एक छोटी सी झलक की उम्मीद में मैंने एक जगह पर घंटों इंतजार किया, जिससे मैं धैर्य और दृढ़ता में प्रशिक्षित हुई। यह भी सीखा कि कैसे भूत और भविष्य की सुध लिए बिना, वर्तमान में रहते हुए, सचेत रहा जाये। विनम्रतापूर्वक यह जाना कि जब काला पैंथर खोजने की बात आती हैं तब धन और विशेषाधिकार बहुत कम उपयोगी हैं। ख़ुशी भौतिक संपत्ति से परे, छोटी चीज़ों से मिलती है।

हालांकि, सब से बढ़कर ब्लैकी ने मेरी आँखों को जंगल, उसकी शांति और इसके बदलते मौसमों को उत्सुकतापूर्वक निरीक्षण करना सिखाया।

मैंने पेड़ों, झाड़ियों और जंगल के फर्श के लिए खतरा, तेजी से फैलने वाली खरपतवारों के बारे में सीखा। उसी जंगल में, जिसमे काली बिल्ली रहती है, बहुत से जानवरों को देखा, उनमे से कुछ शर्मीले, कुछ निर्भीक, कुछ जाने पहचाने तो कुछ नए थे। जैव विविधता के साथ वनस्पति, कीड़ो एवं जानवरो के परस्पर अंतर्संबद्धता के बारे में जानने के बाद मैंने अपने आपको बहुत मामूली पाया। मुझे जंगल को सरंक्षित और पुनर्जीवित करने के लिए किये गए वन विभाग के सफल प्रयासों पर गर्व हुआ। मैं जेनु कुरुबा जैसे आदिवासी लोगों के प्रति आभारी हुई, जो अभी भी अपनी बुद्धिमत्ता और ज्ञान से इन जंगली इलाकों और उनके आसपास गुजारा कर रहे हैं। मैं उन सारे पर्यटकों से खुश थी, जो सभी प्रकृति और जंगल से पुनः जुड़ने की कोशिश कर रहे थे।

और, सच कहा जाए तो, सभी ब्लैक पैंथर को खोजने की कोशिश कर रहे थे। यह जानवर 2015 में पहली बार देखा गया था और पर्यटकों की रूचि को जीवित रखने के लिए बीच-बीच में दिख जाया करता था, लेकिन इतनी बार भी नहीं कि यह कहा जा सके कि वह नियमित रूप से दिख जाता है। वह सबसे अलग था, वह सुन्दर था, वह नज़र नहीं आता था। लोग उसकी एक झलक देखना चाहते थे।

640 वर्ग कि.मी. जंगल के 60 वर्ग कि.मी. के पर्यटन क्षेत्र में इस एक काली बिल्ली को खोजने की कोशिश में, दुनिया भर से लोगों के समूह कबीनी आते रहे थे।

पर्यावरणविद् और वनअधिकारी इस सनक से हैरान हैं। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि ये सारी हलचल किसलिए! वे कहते हैं, आखिरकार यह सिर्फ एक बिल्ली ही तो है!

यह सच है। ब्लैक पैंथर एक बड़ी जंगली बिल्ली ही है। बस एक और तेंदुआ, जिसकी गहरी रंजकता अवस्था, जो इसके धब्बों को तो बरकरार रखता है पर इसके ख़ाल के बाकी हिस्सों को काला कर देता है। ऐसा कोई कारण नहीं है कि हम उसे विशेष माने।

वास्तव में, कर्नाटक में कई काले तेंदुए हैं। तो फिर इसे ही क्यों विशेष रूप से इतना चाहा जा रहा है? शायद इसलिए कि यह एक ऐसा पैंथर है, जिसके क्षेत्र का नक्शा अच्छी तरह से बनाया गया है, और सौभाग्यवश वह पर्यटन क्षेत्र में भी आता है। और इसलिए भी कि वह अभी भी दुर्लभ है, और उसे ढूंढ पाना आसान नहीं है।

पीछा करने के रोमांच से लोग उत्साहित हैं। या, शायद, जैसा कि मेरे साथ हुआ है, ब्लैकी की तलाश उन्हें जंगल और प्रकृति से जुड़ने की उनकी अपनी गहरी चाह को समझने में मदद करता है। खासकर शहरी लोग, जो जंगल से खुद को बहुत दूर हुए महसूस करते हैं।

शायद किसी एक प्रजाति के जानवर को चाहने से हम यह समझ पाते है कि वह खाद्य श्रृंखला के ज़रिये अन्य प्रजातियों से और जिस पर्यावरण में वह रहता है, उस से कैसे जुड़ा हुआ है। और यह सब कैसे मानव-कल्याण से भी जुड़ता है। जंगल का अनुभव करने से होने वाले वास्तविक लाभों पर अभी हाल ही में बहुत शोध किया गया है। प्रकृति में समय बिताना शांतिदायक है।

अब जब ब्लैकी को देख लिया है, तो क्या यह पर्याप्त है? नहीं बिलकुल नहीं। जंगल मुझे बार-बार वापस बुलाता है, ब्लैकी अभी भी मुझ पर अपनी पकड़ बनाए हुए है। पिछली दो बार जब मैं कबीनी में गयी, तो कई बार ब्लैकी को देखने में विफल रही थी। तो क्या फिर से इतिहास खुद को दोहरा रहा है?

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि मैं ब्लैकी सहित पूरे जंगल से प्यार और सम्मान करने लगी हूँ। हमें बहुत सतर्क रहना होगा कि किसी एक जानवर के चका-चौंध में बह न जाएँ, चाहे वह कितना ही रोमांचकारी क्यों न हो, फिर चाहे वह बाघ हो या तेंदुआ । हम सभी को, विशेषकर पर्यटकों को, जंगल में सिर्फ कुछ लेने नहीं जाना चाहिए, बल्कि जंगल और उसके पारिस्थितिकी तंत्र के सरंक्षक के रूप में जिम्मेदारी स्वीकार करने के लिए भी प्रतिबद्ध होना चाहिए।

इस महामारी ने भी हमें बहुत कुछ सिखाया हैं। अब हम जानवरों से इंसानों में फैलने वाली पशुजन्य बीमारियों के खतरों को भलीभांति जानने लगे हैं। हम जानते हैं कि हमें जानवरों को उनका स्वयं का स्थल, स्वयं का क्षेत्र देना होगा। अब हम स्वीकार करते हैं कि ऐसा करके, हम न केवल उनकी, बल्कि भूमि, जंगल और इंसानों की भी रक्षा करते हैं। हम विनयशील हो गए हैं, और अब, हम भविष्य में बेहतर संतुलन को बहाल करने का अवसर देखते हैं।

हमारी जैव-विविधता इस ग्रह को सभी के लिए रहने लायक बनाती है, इसमें आप, मैं और ब्लैकी भी शामिल हैं। हमारी जिम्मेदारी है, एक साथ मिलकर, हमारे गहन आपसी संबद्धों को फिर नए सिरे से शुरु करने की, बेहतर करने की और उसका आनंद लेने की भी।

लेखिका का परिचय
रोहिणी निलेकणी एक लेखिका और समाजसेवी हैं। वे अर्घ्यम् नामक संस्था की अध्यक्षा हैं जो जल संरक्षण व स्वच्छता पर काम करती है। साथ ही वे शिक्षा से जुड़ी एकस्टेप की सह संस्थापक और पर्यावरण संस्था एट्री की प्रबन्ध समिति की सदस्या भी हैं।

हिन्दी अनुवाद: प्रवर मौर्य
यह लेख ‘नेचर कन्ज़र्वेशन फाउंडेशन (NCF)’ द्वारा चालित ‘नेचर कम्युनिकेशन्स’ कार्यक्रम की एक पहल है। इस का उद्देश्य भारतीय भाषाओं में प्रकृति से सम्बंधित लेखन को प्रोत्साहित करना है। यदि आप प्रकृति या पक्षियों के बारे में लिखने में रुचि रखते हैं तो ncf-india से संपर्क करें।

KEYWORDS

YOU MAY ALSO WANT TO READ

Nov 02, 2024
Article
Exactly 20 years ago, in the summer of 2004, I fell in love again. First with a tree, then with a mountain, and, eventually, with a whole biosphere. On an [...]
Oct 22, 2024
Article
By Tanya Kak – Portfolio Lead, Rohini Nilekani Philanthropies Farmers for Forests, a Rohini Nilekani Philanthropies (RNP) partner, is working on a mission to increase and protect India’s biodiverse forest [...]
Jun 19, 2024
Article
By Tanya Kak – Portfolio Lead, Rohini Nilekani Philanthropies Today, the conversation on responding to the climate crisis focuses disproportionately on mitigating greenhouse gas emissions like carbon dioxide. This view—held [...]