जिम्मेदारी… अगर बच्चा प्रकृति के साथ समय नहीं बिताता तो उसमें अवसाद की आशंकाएं बढ़ जाती हैं
माता-पिता के रूप में, जब हम अपनी विरासत के बारे में सोचते हैं कि हम अपने बच्चों के लिए क्या करेंगे तो अक्सर दिमाग में भौतिक धन जैसे कि गहने, घर, कार या फिर कैश का ख्याल आता है। लेकिन आने वाले कल को देखते हुए यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने बच्चों और पोते-पोतियों के लिए सिर्फ आर्थिक संपदा नहीं बल्कि जैविक संपदा भी विरासत के रूप में छोड़कर जाएं। जिस तरह हम अपने परिवार की संपत्ति की परवरिश करते हैं, क्या हम उसी तरह प्राकृतिक संपदा की परवरिश कर सकते हैं?
हम जब कमाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, अपनी बचत का निवेश करते हैं और उसे बढ़ता देखकर हमें गर्व महसूस होता है। तब हमारे पास आनंद लेने के लिए भी कुछ होता है और पीछे छोड़कर जाने के लिए भी। क्यों न हमारी परवरिश ऐसी हो कि हमें पेड़-पौधे और जानवरों की प्राकृतिक दुनिया को पुनर्स्थापित और विकसित करने में भी वही संतुष्टि मिले? मुझे जब भी मौका मिलता है मैं जंगलों में जाना पसंद करती हूं। जब मैंने पक्षियों से प्यार करना सीखा तब मैंनें पहले से ज्यादा खुश और शांत रहना भी सीखा। हमारे दिलों की गहराई और बायोलॉजी में प्रकृति और जीवित प्रणालियों के लिए लगाव होता है। जीव विज्ञानी ई.ओ विलसन ने इसे “बायोफीलिया’ बताया है। कुछ लोग कहते हैं कि बायोफीलिया मानव जाति के भविष्य की कुंजी है। यदि हम शहरों में रहते हैं, तो हमारा बायोफीलिया जताना मुश्किल होता है। शहरों में भीड़, कंक्रीट, कचरा और प्रदूषण हैं। झीलें और नदियां, नालियों में तब्दील हो गई हैं, हरे-भरे स्थान या तो घट रहे हैं या फिर दरवाजों के पीछे बंद हैं। लेकिन इस समृद्ध प्रकृति वाले देश में कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कहां रह रहे हैं, क्योंकि हम प्रकृति के उपहारों से ज्यादा दूर नहीं हैं। चाहे वह जंगल हो या घास का मैदान, रेगिस्तान हो या रेनफॉरेस्ट, या वेटलैंड। शहरी इलाकों में भी पार्क, तालाब और पेड़ हैं। सिर्फ एक बड़ा बरगद या पीपल का पेड़ एक मिनी इकोसिस्टम की तरह है, जो कई पक्षियों और छोटे जीवों की मेजबानी करता है। वातावरण को शीतल रख सकता है।
हम अपने बच्चों को बाहर ले जाकर जीवन के अलग-अलग रूप दिखा सकते हैं और बता सकते हैं कि ये सभी रूप किस तरह से पर्यावरण के अनुकूल ढल जाते हैं। शायद इससे आने वाली पीढ़ी को समझने, उससे प्यार करने और इको क्षेत्रों की सुरक्षा करने में मदद मिलेगी, जिस पर उनका भविष्य निर्भर होगा। शहरी बच्चों को विशेष रूप से उन वयस्कों की आवश्यकता होती है जो प्राकृतिक दुनिया को देखने में उनकी मदद कर सकते हैं। इस बात के कई सबूत हैं कि जो बच्चे प्रकृति से दूर रहकर बड़े होते हैं उनमें व्यावहारिक रूप से या फिर कई दूसरे तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं, जो उनके लिए हानिकारक हो सकते हैं। रिचर्ड लोव नाम के एक लेखक ने इसे प्रकृति की कमी के कारण होने वाला विकार, “नेचर डेफिसिट डिसऑर्डर’ बताया है। उनका मानना है कि अगर बच्चा प्रकृति के साथ पर्याप्त समय नहीं बिताता तो उसके चिंता या अवसाद में होने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं। इस देश की दार्शनिक जड़ों तक अगर हम जाएं तो भी यही सच हमारे सामने आएगा कि हम इस धरती से हैं, यह पृथ्वी और ग्रह हमसे नहीं हैं। जंगल हमें प्राकृतिक दुनिया में व्यापक और गहरे संबंधों को समझने की अनुमति देता है, जिस दुनिया का मनुष्य केवल एक छोटा और कमजोर हिस्सा है। क्योंकि जंगलों की दुनिया केवल सुंदरता के बारे में नहीं है बल्कि शहरी, कृषि और आर्थिक क्षेत्र कहीं न कहीं एक ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र से जुड़े हैं जो पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर है। चाहे वह पानी, औषधीय पौधों, अपशिष्ट प्रबंधन, जंगली खाद्य पदार्थ या फिर मछली पालन हो, इन सबके लिए हमें जैव विविधता की आवश्यकता है। जब युवा इस बात को बौद्धिक और भावनात्मक दोनों स्तरों पर समझने लगेंगे, तो वे भी इसमें भागीदारी करने लगेंगे।
पिछले साल से दुनिया भर के बच्चे, लोगों को यह बताने के लिए सड़कों पर आ रहे हैं कि हमें धरती को ग्लोबल वार्मिंग से बचाना है। वे समझते हैं कि जलवायु परिवर्तन होने लगा है और वे अपना भविष्य बचाने के लिए अब तुरंत कोई एक्शन चाहते हैं। भारत में, बच्चों के भविष्य को बचाने के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है। गर्मियों की छुट्टियां परिवारों के लिए प्रकृति के बीच जाने और यह समझने का एक अच्छा समय है कि ऐसा क्या है जो पहले से मौजूद है और हमें उसकी रक्षा करनी है। यदि बच्चे गर्मी में बाहर नहीं जा सकते हैं, तो घर के अंदर भी करने के लिए बहुत कुछ है। हमारे अपने घरों में और उसके आस-पास जीवन एक आश्चर्यजनक मात्रा में छिपा हुआ है जिसे बारीकी से देखकर बहुत कुछ समझा जा सकता है। कीड़े, पक्षी और छोटे जानवर हर जगह हैं, जैसे कि पौधे और पेड़ हैं। कई आकर्षक और डिजिटल तरीके भी हैं जिनके माध्यम से आप खुद को जंगल से जोड़ सकते हैं। कई लोग टीवी चैनलों पर वाइल्ड लाइफ डॉक्यूमेंट्री देखते हैं। कुछ वर्चुअल रिएलिटी वीडियोज भी हैं, जो आपको शेरों और हाथियों के आमने-सामने ले आते हैं। इसे देख आप डर और उत्साह साथ महसूस करते हैं।
यह तकनीक सार्वजनिक पुस्तकालयों या कॉलेजों में मिलनी चाहिए, ताकि हजारों छात्र जंगल का अनुभव ले सकें। वेब आधारित प्लेटफॉर्म भी मौजूद है, जहां लोग जो भी देखते हैं उसे रिकॉर्ड कर सकते हैं, इससे समय के साथ जो कुछ हो रहा है उसकी बदलती तस्वीर बनाने में मदद मिलती है। उदाहरण के लिए सीजन वॉच पर बच्चे फूल खिलते, या पक्षियों का अंडे से बाहर निकलना दर्ज कर सकते हैं। जैसे ई-बर्ड एप है, जो लोगों को यह रिकॉर्ड करने का मौका देता है कि उन्होंने कौन-सा पक्षी देखा। भले ही वह मैना, बुलबुल या कौवा हो। जब कई लोग इसमें भाग लेते हैं, तो एक पैटर्न बनने लगता है और हम बहुत कुछ सीख जाते हैं। इससे लोग समझ गए हैं कि अब हमें भी अपने प्राकृतिक खजाने को बहाल करने के लिए अपने बायोफीलिया को फिर से खोजना होगा। फिर हमारे पास आनंद लेने के लिए भी कुछ होगा और अपने बच्चों के भविष्य के लिए बहुत कुछ छोड़ जाने को भी। आखिर यही विरासत भविष्य में सबसे मूल्यवान होगी।